लखनऊ के हज हाउस में अब शादियां भी होगी और शहनाई भी बजेगी। प्रदेश सरकार राजधानी लखनऊ और गाज़ियाबाद के हज हाउस को कमाई का जरिया बनाने जा रही है। इसके लिए राज्य हज कमेटी दोनों हज हाउस को पीपीपी मॉडल पर देने के लिए प्रस्ताव तैयार करवा रही है।
हज हाउस का इस्तेमाल साल में 3 बार होता है
प्रदेश के हज यात्रियों को ठहराने के लिए लखनऊ के सरोजनीनगर में सरकार ने 2006 में मौलाना अली मियां मेमोरियल हज हाउस बनवाया था। वहीँ, पश्चिमी यूपी से हज के लिए जाने वालों के लिए यूपी सरकार ने 2016 में गाज़ियाबाद में भी हज हाउस का निर्माण कराया था। हज हाउस का इस्तेमाल साल में हज से पहले सिर्फ 3 महीने के लिए होता है। वहीं, इसके रख-रखाव पर राज्य हज कमेटी को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। राज्य हज कमेटी के सचिव राहुल गुप्ता ने मीडिया को बताया कि सरकार ने दोनों हज हाउस के व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए इसे पीपीपी मॉडल पर देने के लिए मंज़ूरी दी है। प्रस्ताव पर मुहर लगने के बाद इसके इस्तेमाल के लिए कंपनी से एक निश्चित रकम तय की जाएगी।
हज यात्रा निरस्त होने से हज हाउस की कमाई पर पड़ा असर
राज्य हज कमेटी की बीते सालों से आमदनी काफी घट गई है। इसकी आय हज के लिए होने वाले आवेदनों से होती है। आवेदकों से लिए जाने वाले 300 रुपये के शुल्क का आधा हिस्सा हज कमेटी ऑफ़ इंडिया और बाकी राज्य हज कमेटी को मिलता है। ऐसे में जितने ज्यादा आवेदन, उतनी ही हज कमेटी की कमाई होती है। हज यात्रा महंगी होने की वजह से प्रदेश से आवेदनों की संख्या में कमी आई है तो हज कमेटी की कमाई भी घट गई। कोरोना काल में तो बीते दो साल से हज यात्रा ही निरस्त है। ऐसे में हज कमेटी की कमाई का जरिया भी ठप है। ऐसे में हज हाउस के रख-रखाव पर होने वाले खर्च के लिए भी कमेटी को मुश्किल आ रही है। इसी को देखते हुए हज हाउस में व्यावसायिक कार्यक्रम करवाए जाने का फैसला लिया जा रहा है।
साल 2007 में हज कमेटी ने अपने स्तर पर लखनऊ के हज हाउस को शादियों के बुक करना शुरू किया था। उस समय हज कमेटी को हज हाउस से सालाना करीब 10 से 12 लाख रुपये की आमदनी आसानी से हो जाती थी। हालांकि बाद में सरकार बदलने के बाद इसे बंद कर दिया गया। अब एक बार फिर हज हाउस को व्यावसायिक कार्यक्रम के लिए देने के लिए तैयारी चल रही है।